टीबी के बारे जन समुदाय को बताएं: पीपीएम समन्वयक
– संक्रमण को लेकर ज्यादा संवेदनशील होते हैं छोटे बच्चे
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): हापुड़/ गढ़मुक्तेश्वर, 02 अप्रैल, 2024। जिला क्षय रोग विभाग विश्व क्षय रोग दिवस के उपलक्ष्य में लगातार जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। इसी क्रम में मंगलवार को विभाग की ओर से चौधरी महेंद्र सिंह डिग्री कॉलेज, गढ़मुक्तेश्वर और आईएमआईआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट, भैना में स्काउट एंड गाइड कैडेट्स को टीबी की बीमारी, बचाव के उपाय, लक्षणों, जांच और निदान के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। जागरूकता कार्यक्रम के आयोजन के लिए चौधरी महेंद्र सिंह डिग्री कॉलेज की डायरेक्टर रेणुका चौधरी और प्रिंसीपल डा. हरीश कुमार शर्मा, चीफ प्रोक्टर प्रेरणा वर्मा और कोआर्डिनेटर प्रदीप कुमार ने जिला क्षय रोग विभाग का आभार व्यक्त किया। दूसरी ओर से आईएमआईआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर एडवोकेट डा. राजेंद्र सिंह तोमर और प्रिंसीपल डा. विनोद कुमार पंवार का कार्यक्रम में विशेष सहयोग रहा। दोनों कार्यक्रम स्काउट एंड गाइड प्रशिक्षक प्रकाश चंद शर्मा के कुशल कोआर्डिनेशन में संपन्न हुए।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पीपीएम समन्वयक सुशील चौधरी ने बताया – छोटे बच्चे टीबी समेत तमाम संक्रमणों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इसका सीधा सा कारण है कि बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इसलिए जब तक आवश्यक न हो बच्चों को अस्पताल लेकर न जाएं। कई बार मां बीमार होती है तो वह अपने साथ अपने बच्चे को भी अस्पताल ले जाती हैं, ऐसा करना गलत है। बच्चों के ऐसे स्थानों पर न ले जाएं जहां संक्रमण का खतरा हो। मां के बीमार होने पर परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की देखभाल करें और बच्चे को मां से अलग रखने का प्रयास करें। मां को यदि बच्चे के पास जाना है तो वह मास्क का इस्तेमाल करें। ऐसा करने से मां का संक्रमण बच्चे को नहीं लगेगा। टीबी के अधिकतर मामले फेफड़ों की टीबी के होते हैं और फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है। यह सांस के जरिए फैलती है।
वरिष्ठ उपचार पर्यवेक्षक (एसटीएस) गजेंद्र पाल सिंह ने बताया – दो सप्ताह से अधिक खांसी या बुखार, खांसी में खून या बलगम आना, रात में सोते समय पसीना आना, वजन कम होना, थकान रहना और सीने में दर्द रहना टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इनमें से एक भी लक्षण आने आने पर टीबी की जांच करानी चाहिए। सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर टीबी की जांच और उपचार की सुविधा उपलब्ध है। जांच में पुष्टि होने पर रोगी का उपचार शुरू कर दिया जाता है। अधिकतर मामलों में नियमित रूप से छह माह तक दवा खाने के बाद टीबी पूरी तरह ठीक हो जाती है। उपचार के दौरान रोगी को हर माह पांच सौ रुपए की पोषण राशि भी जाती है। निक्षय पोषण योजना के तहत पोषण राशि का भुगतान रोगी के बैंक खाते में किया जाता है।
वरिष्ठ प्रयोगशाला पर्यवेक्षक रामसेवक ने बताया – दवा के साथ नियमित रूप से उच्च प्रोटीन युक्त भोजन लेना जरूरी होता है। टीबी संक्रमण ने नष्ट हुई कोशिकाओं के पुनर्निर्माण के लिए शरीर को अतिरिक्त प्रोटीन की जरूरत होती है। इसलिए क्षय रोगियों का खानपान का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। कार्यक्रम के दौरान कैडेट्स ने राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) स्टाफ से सवाल कर अपनी जिज्ञासा शांत की और साथ ही कार्यक्रम के दौरान मिली जानकारी अपने परिवार और पड़ोसियों तक पहुंचाने की बात कही।
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