जनजागरण का माध्यम रहा है गढ़ गंगा मेला
हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): गढ़मुक्तेश्वर का कार्तिक पूर्णिमा का लक्खी मेला केवल गंगा स्नान का धार्मिक महत्व ही नहीं रखता अपितु इस मेले को संगठन तथा दान जन चेतना का साधन भी बनाते रहे हैं।
स्वाधीनता संग्राम के दिनों में इस गंगा मेले में काग्रेन अपना शिविर लगाकर विभिन्न सम्मेलनों के प्रायोजन किया करती थी। स्वदेशी बादी सम्मेलन, नशाबन्दी सम्मेलन अस्पता निवारण सम्मेलन जैसे सम्मेलनों में हजारों-हजार ग्रामीण इकट्ठे होकर कांग्रेसी नेताओं के आधी-आधी रात तक भाषण सुना करते थे। इन सम्मेलन में लाल बहादूर शास्त्री, जलराम शास्त्री मास्टर सुन्दर लाल प्रभुपाल अग्रवाल, नाला भगवत प्रसाद कन्सल जैसे नेता उपस्थित रहकर सम्बोधित किया करते थे। सन् १९४१ में लाल बहादूर शास्त्री तथा अलगुराम शास्त्री ने दो दिन तक मेले में रहकर ग्रामीणों स्वाधीनता आंदोलन का संदेश दिया था।
जब मेला ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों के उद्घोषों से गूंजाः पिलखुवा के वयोवृद्ध स्वाधीनता सेनानी इन्द्र दत्त गुप्त ने अपने साथियों सहित कार्तिक पूर्णिमा के इस गढ़ गंगा मेले में अग्रेजों भारत छोड़ों का उद्घोष करते हुए जब गिरफ्तारी दी थी, तो पूरे मेले में से हजारों ग्रामीणों ने वहा बनी कोतवाली पहुंचकर उनका स्वागत किया था।
कांग्रेस के पास की बगल में ही खादी उन्नायक तथा स्वाधीनता सेनानी महाशय प्यारे लाल जी (हापुड़ निवासी) में खादी का स्टाल लगाया था। वे ग्रामीणों को खादी का महत्व बताते हुए विदेशी कपड़ा न पहनने की प्रेरणा भी देते थे।
आर्य समाज भी गढ़ गंगा मेले में पिछले लगभग ६० वर्ष से अपना प्रचार पंडाल लगाता आ रहा है। आर्य समाज के शिविर में जहां प्रकाशवीर शास्त्री, ओम प्रकाश त्यागी, प्रध्यात लोक गायक पृथ्वी सिंह बेधड़क, बलवीर सिंह बेधडक पंडित इन्द्रराज जी पं. शिवदयाल जी जैसे विद्वान बाकर वैदिक धर्म के महत्व पर प्रकाश डालते थे, वहीं राष्ट्र रक्षा सम्मेलन मस्कृत सम्मेलन, राष्ट्रभाषा सम्मेलन तथा दहेज विरोधी किया था। सम्मेलनों का भी आयोजन किया जाता था। पृथ्वी सिंह बेधड़क के हृदय धडका देने वाले ढोलक व हारमोनियम की थाप पर होने वाले लोकगीतों को सुनकर ग्रामीण श्रोता झूम उठते थे।
सनातन धर्म महावीर दल जहां गंगा मेले में अपने स्वयं सेवकों के माध्यम से पूरे दो सप्ताह तक सेवा कार्यों में जुटा रहता था, वही सनातन धर्म सभा के पंडाल में शकराचार्य स्वामी कृष्ण बोधाश्रम जी शास्त्रार्थ महारथी माधवाचार्य शास्त्री, पं. काली चरण पौराणिक जैसी विभूतियां धर्म और गंगा के महत्व पर प्रवचन करते थे। यज्ञ-हवन तथा भंडारों से पूरा मेला भक्तिमय हो उठता था।
कथा की राशि कन्याओं के विवाह मेः बताते हैं सन् १९२० में गढ़ गंगा मेले में उत्तर भारत ही नहीं काशी तक उत्तर भारत ही नहीं काशी तक अपनी विद्वता तथा पांडित्य का झंडा फहराने वाले छत्रपति श्रीधर जी महाराज ने श्री मद्भागवत की कथा की थी। उस कथा में चढ़ावें चांदी-सोने की गिन्नियां तथा जो भी धनराशि आई भी उन्होंने देखते ही देखते गरीब लोगों की पुत्रियों के विवाह के लिए वितरित कर दी थी। पंडित श्रीधर जी डासना (गाजियाबाद) निवासी तथा काशी के पंडितो ने छत्रपति की उपाधि में उन्हें अलंकृत किया था।
उप्र सूचना विभाग का अलग से कैम्प लगता है जिसमें प्रदेश की प्रगति, कृषि विकास आदि के चित्र प्रदर्शनी आदि का आयोजन किया जाता है। अनेक बार इस मेले ने विदेशी पर्यटकों तथा पत्रकारों को भी आकर्षित किया। १९८२ में अमेरिका की टेलीविजन एजेंसी ने पूरे तीन दिन तक १५ किलो मीटर क्षेत्र में फैले इन लक्खी मेले का छायांकन कराकर उसे अपने यहाँ प्रदर्शित किया था।
विदेशी चकित हो उठेः उस वर्ष गढ़ क्षेत्र तथा पार तिगरी क्षेत्र मेले आमने-सामने पड़े थे। बीच में गंगा की धार थी। रात के समय जब लाखों दीपक दिखाई दिए, तो टी. बी. एजेंसी केमि कपूर ने आश्चर्यचकित होकर कहा था, यह अद्भुत दृश्य मैं पहली बार देख रहा हूं। पर धार्मिक एकता और निष्ठा का यह ज्वलन्त प्रमाण है।
गढ़ गंगा मेला कभी बिजली की चमक-दमक न होने से सरसों के तेल के दीपकों तथा मिट्टी के लैम्पों से आलोचित हुआ करता था। उस समय भी उसमें उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा और राजस्थान तक के हजारों श्रद्धालु, नर-नारी पूरे दो सप्ताह तक इस मेले में रहकर धार्मिक कर्मकांड सम्पन्न करते थे।
आज बिजली की चमक-दमक के कारण भले ही मेले में रौनक बढ़ गई है, किन्तु अब न इतनी आस्था है और न समय कि लोग दो सप्ताह तक मेले में रहे, फिर भी यह गंगा मेला पूरे देश में अनूठा होता है, जिसमें आज भी लाखों श्रद्धालु यहां आकर भागीरथी के प्रति अपनी निष्ठा तो व्यक्त करते ही है।
उत्तरी भारत का प्रमुख गढ़ गंगा का मेला 17 नवम्बर से प्रारंभ हो चुका है, जो 29 नवम्बर-2023 तक चलेगा। मुख्य स्नान पर्व 27 नवम्बर का है। उत्तर प्रदेश के जनपद हापुड़ के पौराणिक तीर्थस्थल गढ़मुक्तेश्वर में गंगा किनारे लगता है। गढ़मुक्तेश्वर, देश की राजधानी दिल्ली से 90 किमी दूर दिल्ली-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। गढ़-गंगा मेले में 30 लाख तीर्थ यात्रियों के पहुंचने की सम्भावना है।
(प्रख्यात पत्रकार स्व.श्री शिवकुमार गोयल के संग्रह से साभार)
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