हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): देश में हर वर्ष 26 जुलाई को उन शहीदों को याद किया जाता है जिन्होंने कारगिल युद्ध में अदम्य साहस दिखाया और दुश्मनों को मुंह की खाने पर मजबूर कर दिया। 26 जुलाई को भारत में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है और उन जांबाज जवानों को सलाम, नमन किया जाता है जिन्होंने देश की सेवा और रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए। इन जवानों के शौर्य की कहानियां सुनकर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
तीन मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने जम्मू कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तानी सेना को मुंह की खाने पर मजबूर कर दिया था। कारगिल युद्ध में भारत ने अपने 527 सपूतों को खो दिया था। उन्हीं में से जनपद हापुड़ के दो जवानों ने भी दुश्मनों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। यह जवान है गढ़ क्षेत्र के गांव लुहारी निवासी सतपाल सिंह और बाबूगढ़ क्षेत्र के गांव उदयरामपुर निवासी शहीद चमन सिंह। दोनों के बलिदानों को आज भी याद किया जाता है और दोनों की गौरव गाथा आज भी सुनाई जाती है जिसे सुनकर सभी की आंखें नम हो जाती है तो सीना भी फक्र से चौड़ा होता है।
आज हम पहुंचे हैं गांव उदयपुर… उस सपूत की भूमि पर जिसका पार्थिव शरीर देख पिता की आंखें भले ही नम हो गई लेकिन उसने अपने बेटे की वीरता पर गर्व किया था। वर्ष 1984 में दलपत सिंह का पुत्र चमन सिंह सेना में भर्ती हुए जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपना लहू और बलिदान देकर जिले का मान बढ़ाया। भारी गोलीबारी के बीच तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने के लिए लांस नायक चमन सिंह ने शौर्य का परिचय देते हुए पांच जवानों के साथ चढ़ाई की और चोटी पर चढ़कर उन्होंने कई दुश्मनों को ढ़ेर कर दिया। अपनी जान की फिक्र किए बिना ही वह बढ़ते गए और 13 जून 1999 को उन्हें वीरगति प्राप्त हुई जिनकी गौरवगाथा के किस्से आज भी गांव में सुनाए जाते हैं।
शहीद चमन सिंह का पार्थिव शरीर जब हापुड़ पहुंचा तो इलाका चमन सिंह अमर रहे और भारत माता की जय के उद्घोष से गूंज उठा। चमन सिंह के अंतिम दर्शन करने के लिए सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचे। बुजुर्ग बताते हैं कि जब कारगिल युद्ध में जनपद ने अपने वीर सपूतों को खोया तो गम की लहर के बीच लोगों के घरों के चूल्हे नहीं जले। अपने बेटे का पार्थिव शरीर देख दलपत सिंह ने पुत्र का स्वागत किया और उसकी वीरता पर फक्र किया। शहीद चमन सिंह की पत्नी शकुंतला देवी फिलहाल अपने दो पुत्रों के साथ नोएडा में रहती हैं जिन्हें सरकार द्वारा दी गई आर्थिक मदद और पेट्रोल पंप मिलने के पश्चात वह बच्चों का पालन पोषण कर रही हैं। गांव में शहीद की प्रतिमा और समाधि मौजूद है जिसे देख कर आज भी ग्रामीणों का सीन फक्र से चौड़ा होता है। चमन सिंह के माता-पिता का देहांत हो चुका है जिनका मकान अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। गांव में फिलहाल चमन सिंह के भाई गिरिराज परिवार के साथ रहते हैं जो अपने भाई के बहादुरी के किस्से लोगों को सुनाते हैं। EHapur News भी कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के पराक्रम को श्रद्धांजलि अर्पित करता है।