हापुड़, सीमन (ehapurnews.com): शक्ति की आराधना का प्रमुख पर्व शारदीय नवरात्रि का प्रारम्भ तीन अक्तूबर 2024 दिन गुरुवार से हो रहा है। तृतीया तिथि वृद्धि होने से देवी दुर्गा जी की पूजा उपासना का यह पर्व 12 अक्टूबर शनिवार तक चलेगा तथा देवी दुर्गा प्रतिमा विसर्जन व नवरात्रि व्रत पारण 13 अक्टूबर को सुबह 9.09 से पहले किया जाएगा।
भारतीय ज्योतिष-कर्मकांड महासभा के अध्यक्ष एस्ट्रो के. सी. पाण्डेय (काशी वाले) ने बताया कि संभव हो तो विसर्जन सूर्योदय से पूर्व करें। अपरान्हकालीन तिथि व श्रवण नक्षत्र प्राप्त होने से विजयादशमी पर्व पूजन 12 अक्टूबर शनिवार को होगा। इसी दिन शमी वृक्ष पूजन के साथ सीमोलंघन व यात्रा करने से पूर्ण सफलता मिलेगी। शारदीय नवरात्र की शुरुआत गुरुवार को होने से मां दुर्गा जी का आगमन डोली (पालकी) में होगा तथा भैसें पर बैठकर विदा होंगी जो रक्तपात, तांडव, जन-धन हानि व शोक का स्पष्ट संकेत है। अतः भविष्य में युद्ध, आपदा आदि की सम्भावना है।
नौ दिन नौ स्वरूपों की होगी पूजा:
नौ दिनों तक माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों प्रथम दिन माँ शैलपुत्री से क्रमशः ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री देवी का पूजन होगा। माँ दुर्गा का महा अष्टमी निशापूजन 10 अक्टूबर की मध्यरात्रि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के साथ विष्टिकरण (भद्रा) मुहूर्त में होगा जो अत्यंत शुभदायक है। इसी मुहूर्त में भद्रकाली माँ का अवतार हुआ था। अष्टमी व्रत 11 अक्टूबर शुक्रवार को किया जाएगा तथा इसी दिन रात्रि में निशापूजन, बलि, हवन आदि किया जाएगा, हवन व कन्यालंकरण 12 अक्टूबर शनिवार को सुबह 10.58 तक तथा इसी दिन नवमी व्रत भी रखा जाएगा। घट स्थापना समय में भद्रा व अन्य दोष ना होने के कारण अत्यंत शुभफल प्रदान करने वाला होगा। कलश (घट) स्थापना के लिए हस्त नक्षत्र में सुबह 7.44 से दोपहर 1.35 बजे तक समय सही है।
घट स्थापना विशेष शुभ मुहूर्त :-
सुबह 9.39 से दोपहर 12.31 तक हस्त नक्षत्र, स्थिर लग्न, अभिजीत मुहूर्त है। देवी भागवत पुराण व दुर्गासप्तसती में पूरे 9 दिन अलग-अलग वस्तुओं से भी पूजन का विधान बताया गया है। घट स्थापना के लिए मिट्टी का घड़ा सर्वोत्तम रहता है। स्थापना व पूजन के लिए कलश के साथ पंचपल्लव या आम के पत्ते का पल्लव, नारियल, कलावा, रोली, सुपारी, गंगाजल, सिक्का, दूर्वा, गेहूं और अक्षत (चावल), हल्दी, पान के पत्ते, कपूर, लौंग, जावित्री, इलायची, धूप, गाय का देशी घी, गाय का दूध, जोतबत्ती, हवन सामग्री, श्रृंगार का सामान, फल, मिष्ठान आदि सामान की आवश्यकता होती है। कलश स्थापना करने वाले को दुर्गासप्तसती का नित्य पाठ स्वयं या योग्य ब्राह्मण से करवाना चाहिए। पूरे नौ दिन तक व्रत अवश्य करना चाहिए। प्रतिदिन एक कन्या को खिलाते हुए वृद्धि करते हुए 9वें दिन नौ कन्याओं को खिलाना चाहिए। नवमी को पूजन के बाद हवन अवश्य करें तथा हवन में मंत्र “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” व नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:, नम: प्रकृत्यै भदायै नियता: प्रणता: स्मताम्।। मंत्र से आहुति दें। यदि प्रतिदिन कन्या ना मिले तो नवमी को 2 वर्ष से दस वर्ष तक की उम्र की 9 कुमारी कन्या का पूजन कर भोजन कराये और श्रद्धानुसार दान दे। धर्मग्रंथो के अनुसार कन्या की उम्र 10 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। ब्राह्मण को भी भोजन कराकर यथोचित दक्षिणा प्रदानकर दशमी तिथि में व्रत पारण करना करें तभी पूर्ण शुभ फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार जो लोग नौ दिन का व्रत नही कर सकते है वो श्रद्धा भाव से प्रथम दिन व अष्टमी के दिन अथवा सप्तमी, अष्टमी व नवमी तीन दिन का व्रत रख कर भी देवी की कृपा प्राप्त कर सकते है। देवी पुराण के अनुसार आश्विन शुक्ल षष्ठी तिथि को मूल नक्षत्र में माँ सरस्वती पूजन (पुस्तक पूजन) व बिल्ववृक्ष का पूजन के साथ बिल्ववृक्ष में ही माँ दुर्गा की पूजा करें। आह्वान करने से किसी भी कार्य में विजय अवश्य प्राप्त होती है। मान्यता है कि रावण वध के लिए तथा भगवान राम की कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने इसी तिथि मुहूर्त में पूजन किया था जो 9 अक्टूबर, बुधवार को है। संसार में शक्ति की उपासना सर्वत्र होती है वेद, पुराण, गीता आदि सभी धर्मग्रंथों में शक्ति आराधना का वर्णन है। दुर्गा सप्तसती में वर्णित “दुर्गा दुर्गति नाशिनी” अर्थात माँ दुर्गा दुःख व दुर्गति का नाश करने वाली है। इसी प्रकार या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता कहते हुए उपासना की गई है। माँ दुर्गा की आराधना-पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि में अन्य मुहूर्त निम्न है:
– सरस्वती पूजन व विल्ववृक्ष पूजन 9 अक्टूबर बुधवार सायंकाल बेला में
– भद्रकाली पूजन 10 अक्टूबर गुरुवार की मध्यरात्रि में
– माँ दुर्गा निशापूजन व सात्विक बली 11 अक्टूबर शुक्रवार की मध्यरात्रि में
– अष्टमी कन्यालंकरण 11 अक्टूबर शुक्रवार दोपहर 12.07 तक
– नवमी कन्यालंकरण 12 अक्टूबर शनिवार को सुबह 10.58 तक होगा
– विजयादशमी पूजन 12 अक्टूबर शनिवार को सुबह 10.58 के बाद से शमी पूजन, अपराजिता पूजन, सीमोलंघन सुबह 11.41 से 1.31 तक पुनः दोपहर बाद 2.56 से 4.23 तक शुभ रहेगा।
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